भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble of the Indian Constitution

संविधान की प्रस्तावना और महत्व का संक्षिप्त सारांश

संविधान की प्रस्तावना (Samvidhan Prastavana):
यह भारतीय संविधान का प्रारंभिक और महत्वपूर्ण भाग है, जो भारत को “प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य” घोषित करता है। इसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया है।भारतीय-संविधान-की-प्रस्तावना.

प्रमुख तिथियां:

  • अंगीकृत तिथि: 26 नवंबर 1949
  • लागू तिथि: 26 जनवरी 1950

प्रस्तावना के घटक:

  1. स्रोत: “हम, भारत के लोग” – संविधान की शक्ति का स्रोत।
  2. राज्य की प्रकृति: संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य।
  3. उद्देश्य: न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व को सुनिश्चित करना।
  4. स्वीकृति तिथि: 26 नवंबर 1949।

महत्व:

  • भारतीय लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों का आधार।
  • नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा।
  • न्यायपालिका के लिए मार्गदर्शक।
  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा।
  • नागरिकों को प्रेरित करने का स्रोत।

विशेषताएं:

  • प्रभुत्व संपन्न: भारत पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र है।
  • समाजवादी: सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित।
  • धर्मनिरपेक्ष: सभी धर्मों को समान अधिकार।
  • लोकतांत्रिक: जनता द्वारा चुनी गई सरकार।
  • गणराज्य: कोई वंशानुगत शासक नहीं।

न्यायपालिका की दृष्टि:
केशवानंद भारती मामले (1973) में, सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना, जिसे बदला नहीं जा सकता।

संविधान की प्रस्तावना न केवल भारतीय लोकतंत्र की नींव रखती है बल्कि यह राष्ट्रीय पहचान और नागरिक चेतना को भी सशक्त बनाती है।

भारत का संविधान: प्रस्तावना और उसके महत्व का विस्तृत विश्लेषण

भारत का संविधान, जिसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, भारत के लोकतांत्रिक शासन का आधारभूत दस्तावेज़ है। यह भारत को एक स्वतंत्र, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है। इसमें 25 भागों में विभाजित 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां शामिल हैं। संविधान की प्रस्तावना (Samvidhan Prastavana) इसके उद्देश्यों और मूल्यों का परिचय कराती है। यह संविधान की आत्मा मानी जाती है और इसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व जैसे मूलभूत आदर्शों की झलक मिलती है।


संविधान की प्रस्तावना (Samvidhan Prastavana)

संविधान की प्रस्तावना का पाठ:

हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा इसके समस्त नागरिकों को:

  • सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
  • विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
  • प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए,
  • तथा व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए,

दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई. को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।


प्रस्तावना के घटक

  1. संविधान के अधिकार का स्रोत:
    संविधान में लिखा गया है कि यह भारत के लोगों से अपना अधिकार प्राप्त करता है।
  2. भारतीय राज्य की प्रकृति:
    यह भारत को एक प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करता है।
  3. संविधान के उद्देश्य:
    न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को संविधान के उद्देश्यों के रूप में प्रस्तुत करता है।
  4. अंगीकृत तिथि:
    संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था।

संविधान की प्रस्तावना में प्रमुख शब्द और उनके अर्थ

शब्द अर्थ
प्रभुसत्ता संपन्न भारत अपनी इच्छानुसार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।
समाजवादी सामाजिक और आर्थिक समानता पर बल।
धर्मनिरपेक्ष सभी धर्मों का सम्मान और किसी धर्म को राज्य धर्म न मानना।
लोकतांत्रिक जनता द्वारा चुनी गई सरकार।
गणराज्य राज्य का मुखिया जनता द्वारा चुना जाता है।
न्याय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर समान अवसर।
स्वतंत्रता विचार, अभिव्यक्ति और उपासना की आजादी।
समानता सभी नागरिकों को समान अवसर और अधिकार।
बंधुत्व व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करना।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना का महत्व

  1. संविधान की आत्मा:
    प्रस्तावना संविधान के मूल्यों और आदर्शों का परिचय कराती है। यह भारतीय संविधान के सभी प्रावधानों की व्याख्या और समझ के लिए मार्गदर्शक का काम करती है।
  2. नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य:
    यह नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करती है।
  3. राष्ट्रीय एकता का प्रतीक:
    यह भारत के लोगों को एकजुट करती है और राष्ट्रीय पहचान प्रदान करती है।
  4. प्रेरणा का स्रोत:
    प्रस्तावना नागरिकों को सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता, और समानता की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करती है।
  5. संविधान की संरचना:
    प्रस्तावना राज्य की प्रकृति, शासन के उद्देश्य और मौलिक सिद्धांतों की नींव रखती है।

इतिहास और संविधान सभा का योगदान

भारतीय संविधान की प्रस्तावना का निर्माण डॉ. बी.आर. अंबेडकर की अध्यक्षता में मसौदा समिति द्वारा किया गया। प्रस्तावना के लिए प्रेरणा संविधान सभा में 13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य प्रस्ताव से मिली।

संविधान सभा के कार्य:

  • संविधान सभा में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन तक विचार-विमर्श हुआ।
  • कुल 11 सत्र आयोजित हुए।
  • विभिन्न भाषाओं, विचारधाराओं और धर्मों के बीच सहमति बनाकर संविधान का निर्माण किया गया।

संविधान कब लागू हुआ?

भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारत के ब्रिटिश शासन से एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक गणराज्य बनने का प्रतीक है। संविधान ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 को हटाकर देश का सर्वोच्च कानून बनने की भूमिका निभाई।


प्रस्तावना और सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण

1973 के केशवानंद भारती केस में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान की “मूल संरचना” का हिस्सा है। संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन प्रस्तावना में निहित मूल सिद्धांतों को नहीं बदल सकती।


संविधान की प्रस्तावना का उद्देश्य और उपयोगिता

  1. मूल अधिकारों और कर्तव्यों का मार्गदर्शन:
    प्रस्तावना न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल सिद्धांतों का आधार है।
  2. लोकतांत्रिक व्यवस्था की दिशा:
    यह भारत को एक लोकतांत्रिक राज्य के रूप में परिभाषित करती है, जहां जनता सर्वोच्च है।
  3. समाज को प्रेरित करना:
    यह नागरिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करती है और एक मजबूत राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित करती है।
  4. सामाजिक समानता:
    यह सभी धर्मों, जातियों, और आर्थिक वर्गों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करती है।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान की प्रस्तावना न केवल एक कानूनी दस्तावेज है बल्कि यह एक सामाजिक और नैतिक प्रतिबद्धता भी है। यह भारत की विविधता, एकता, और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है। यह हमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को अपनाने और उन्हें बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है।

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